अमेरिका चांद पर 52 साल बाद उतरा, लैंडर उतारकर कंपनी ने रचा इतिहास-

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INTUITIVE MACHINES/NASA/PA WIRE

पहली बार एक निजी अमेरिकी कंपनी ने चांद की सतह पर अपना मून लैंडर उतारकर इतिहास रच दिया है.

इंटूइटिव मशीन्स नाम की ह्यूस्टन की ये कंपनी पहली निजी कंपनी बन गई है जिसने सफलतापूर्वक चांद पर अपना लैंडर उतारा है.

कंपनी ने ओडेसियस नाम का अपना मून लैंडर चांद के दक्षिणी ध्रुव की तरफ़ उतारा है.

लैंडर को उतारते वक्त कंट्रोलर्स का उसके साथ संपर्क कुछ पलों के लिए टूट गया था लेकिन फिर जल्द इससे सिग्नल मिलने लगा.

फ्लाइट डायरेक्टर टिम क्रेन ने पुष्टि करते हुए कहा, “हम बिनी किसी शक़ के ये पुष्टि कर सकते हैं कि हमारा उपकरण चांद की सतह तक पहुंच गया है और वहां से हमें सिग्नल भेज रहा है.”

वहीं कंपनी के सीईओ स्टीव आल्टेमस ने अपनी टीम से कहा, “चांद पर स्वागत है, ओडेसियस को नया घर मिल गया है.”

ओडेसियस को बीते सप्ताह फ्लोरिडा के केप केनावेराल लॉन्च स्टेशन से छोड़ा गया था.

ये यान तीन लाख 84 हज़ार किलोमीटर (238, 855 मील) की दूरी तय कर चांद तक पहुंचा है.

अमेरिकी स्पेस कार्यक्रम के लिए महत्वपूर्ण उपलब्धि-

जिस वक्त मून लैंडर के चांद के सतह को छूने की ख़बर आई, कंपनी के कर्मचारी खुशी से तालियां बजाने लगे.

ये केवल कंपनी और कमर्शियल इस्तेमाल के लिहाज़ से ही नहीं, बल्कि अमेरिकी स्पेस कार्यक्रम के लिए भी महत्वपूर्ण उपलब्धि मानी जा रही है.

1972 में अपोलो मिशन के बाद से अमेरिका ने चांद पर अपना मिशन नहीं भेजा था.

क़रीब पांच दशक बाद पहली बार इंटूइटिव मशीन्स ने ये रिकॉर्ड तोड़कर अपना ओडेसियस लैंडर चांद पर उतार दिया है.

अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा ने ओडेसियस लैंडर के ज़रिए छह वैज्ञानिक उपकरण चांद पर भेजे हैं.

नासा के एडमिनिस्ट्रेटर बिल नेल्सन ने कंपनी को मुबारकबाद दी है और इसे एक बड़ी जीत कहा है.

उन्होंने कहा, “चांद पर अमेरिका की वापसी हो गई है. आज मानव इतिहास में पहली बार एक कमर्शियल कंपनी, एक अमेरिकी कंपनी ने चांद तक का सफर पूरा किया है. आज का दिन ये दिखाता है कि नासा की कमर्शियल पार्टनरशिप कितनी दमदार और महत्वाकांक्षी है.”

लैंडिंग के ठीक पहले आई मुसीबत-

लैंडिंग से ठीक पहले कंट्रोलर्स के सामने एक बड़ी मुसीबत आ गई जिससे इस मिशन के नाकाम होने का ख़तरा मंडराने लगा.

चांद की सतह से ओडेसियस की दूरी और उसकी गति का आकलन करने वाले जो लेज़र यान में लगे थे, वो सही तरीके से काम नहीं कर रहे थे. इससे मिशन की सफलता को लेकर संशय बढ़ने लगा.

लेकिन अच्छी बात ये रही कि यान में नासा के भेजे कुछ एक्सपेरिमेन्टल लेज़र भी थे और वैज्ञानिकों ने इसका लाभ उठाते हुए इन्हें नेविगेशन सिस्टम के साथ जोड़ दिया.

23 बजकर 23 मिनट (जीएमटी) पर ओडेसियस ने चांद की सतह को छुआ. पहले तो इसमें रखे रोबोट की तरफ से वैज्ञानिकों को कोई सिग्नल ही नहीं मिला.

कुछ देर बाद यान के साथ संपर्क फिर से स्थापित हुआ, हालांकि ये कमज़ोर सिग्नल था. इस कारण लैंडर की स्थिति को लेकर कुछ वक्त तक असमंजस की स्थिति बनी रही.

लेकिन फिर कुछ घंटों के भीतर इंटूइटिव मशीन्स ने बताया कि ओडेसियस चांद की सतह पर है और वहां से डेटा धरती पर भेज रहा है.

इसके ज़रिए लंबे अभियान पर नज़र-

ओडेसियस चांद के दक्षिणी ध्रुव पर 80 डिग्री साउथ की तरफ उतरा है. ये पहला यान है जो अब तक इस ध्रुव के सबसे क़रीब पहुंचा है. ये वहां पांच किलोमीटर उंची पहाड़ियों वाले मेलापार्ट के पास एक क्रेटर के नज़दीक उतरा है.

ये वो इलाक़ा है जहां अमेरिका अपने मानव मिशन के तहत अंतरिक्ष यात्रियों को उतारना चाहता है. अमेरिका आर्टेमिस मिशन पर काम कर रहा है जिसके तहत इंसान को चांद पर उतारा जाएगा और लंबे वक्त तक चांद इंसान के रहने की व्यवस्था की जाएगी.

चांद पर कई गहरे क्रेटर हैं जहां कभी सूरज की रोशनी नहीं पड़ती. ये इलाक़े हमेशा अंधेरे में डूबे रहते हैं. वैज्ञानिकों का मानना है कि इन क्रेटर में जमा हुआ पानी या फिर उसके निशान मिल सकते हैं.

नासा की प्लानेटरी साइंस की निदेशिका लोरी ग्लेज़ कहती हैं, “बर्फ़ हमारे लिए बेहद ज़रूरी है क्योंकि अगर हमें चांद पर बर्फ मिली तो हम इसका फायदा उठा सकते हैं. हमें वहां कम सामान लेकर जाना होगा.”

“हम उस बर्फ को पानी में कंनवर्ट कर उसका इस्तेमाल पीने के पानी के रूप में कर सकते हैं. हम इससे ऑक्सीजन और हाइड्रोजन निकाल कर इनका इस्तेमाल ईंधन के रूप और अंतरिक्ष यात्रियों को सांस देने के लिए कर सकते हैं. चांद पर मानव के रहने के लिए ये खोज बेहद महत्वपूर्ण होगी.”

ओडेसियस अपने साथ नासा के छह उपकरण लेकर गया है. ये उपकरण चांद की सतह की धूल का भी अध्ययन करेंगे.

अपोलो में गए अंतरिक्ष यात्रियों ने चांद की धूल को बड़ी मुसीबत कहा था. उनका कहना था कि ये धूल उनके उपकरणों पर जमकर उन्हें ख़राब कर रही थी.

नासा के वैज्ञानिकों का कहना है कि वो ये समझना चाहते हैं कि लैंडर के उतरने से ये धूल किस तरह सतह से ऊपर उठती है और फिर सतह पर वापस बैठ जाती है.

इसमें एंब्री-रिडल एरोनॉटिक्स स्कूल के छात्रों का बनाया एक कैमरा भी है जो उस वक्त एक्टिव हो जाना चाहिए था, जब लैंडर चांद की सतह से 30 मीटर दूर पहुंचेगा.

ये कैमरा उस वक्त की तस्वीरें लेने के लिए बनाया गया था जब लैंडर चांद की सतह को छूएगा.

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