वास्तु में सभी दिशाओं का अलग महत्व है और हर दिशा किसी न किसी स्थान के लिए उपयुक्त मानी जाती है। जब घर के मुख्य द्वार की बात आती है तो इसके लिए भी कुछ शुभ दिशाएं हैं।
हमारे मन में घर के मुख्य द्वार को लेकर कई सवाल उठते हैं और ऐसा कहा जाता है कि अगर वास्तु के अनुसार आप अपने घर में चीजों का निर्धारण करते हैं और मुख्य द्वार को सजाते हैं तो घर में हमेशा समृद्धि बनी रहती है।
इसी वजह से वास्तु आपको घर का मुख्य द्वार उत्तर या पूर्व दिशा की तरफ रखने की सलाह देता है। वहीं कुछ ऐसी दिशाएं भी हैं जिनकी तरफ मुख वाला घर वास्तु में शुभ नहीं माना जाता है और इस दिशा में घर न बनाने की सलाह भी दी जाती है।
वास्तुकला और ज्योतिष में ऐसी ही एक मान्यता घर की दिशा से संबंधित है। जबकि घर खरीदते या बनाते समय हम कई अन्य बातों का भी ध्यान रखते हैं। ऐसे ही कारक हैं जिनमें मुख्य द्वार की दिशा की बात की जाती है।
आइए Life Coach और Astrologer, K.B. Chaturvedi से जानें आखिर क्यों दक्षिणमुखी घर को अशुभ माना जाता है और यदि आप इस तरह के घर में रखते हैं तो आपको किन वास्तु नियमों का पालन करना चाहिए।
दक्षिणमुखी घर को क्यों माना जाता है अशुभ-
कई संस्कृतियों में दक्षिणमुखी घरों को अक्सर दुर्भाग्य लाने वाला माना जाता है। इस धारणा के पीछे कई कारण हैं और वास्तु की मानें तो घर की दिशा उसकी समग्र ऊर्जा और निवासियों पर प्रभाव को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
यदि दक्षिण मुखी घरों की बात करें तो इस तरह के घरों में धूप कम आती है जिससे घर में नकारात्मक ऊर्जा का वास होने लगता है। मान्यता है कि सूर्य की ऊर्जा का प्रवेश कम होने की वजह से इस तरह के घरों में रहने वालों के लिए वित्त और व्यक्तिगत समस्याएं पैदा हो सकती हैं।
वास्तु शास्त्र और दक्षिण मुखी घरों पर इसका प्रभाव-
वास्तु शास्त्र एक प्राचीन वास्तुशिल्प सिद्धांत है जो हिंदू परंपराओं में गहराई से निहित है। यह मकानों के निर्माण के विभिन्न पहलुओं के लिए दिशा निर्देश निर्धारित करता है। वास्तु की मानें तो घर का मुख जिस दिशा में है, वह उसमें प्रवाहित होने वाली ऊर्जाओं को प्रभावित कर सकता है।
दक्षिणमुखी घरों को अक्सर अशुभ माना जाता है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि वे ऊर्जा के प्राकृतिक प्रवाह के विपरीत होते हैं। वहीं इसके विपरीत उत्तर दिशा को घर के लिए सबसे अनुकूल दिशा माना जाता है, क्योंकि यह सकारात्मक ऊर्जा के प्रवाह को बढ़ावा देती है। दूसरी ओर, दक्षिण दिशा को नकारात्मक ऊर्जा से जुड़ा हुआ माना जाता है, यही वजह है कि कभी-कभी दक्षिण मुखी घर बनाने से मना किया जाता है।
दक्षिण दिशा को यम की दिशा माना जाता है –
यदि हम वास्तु से हटकर ज्योतिष की बात करते हैं तो मान्यता है कि दक्षिण दिशा को यम की दिशा कहा जाता है और जो घर इस दिशा की तरफ होते हैं उनमें रहने वाले लोगों को वित्त और रिश्तों से संबंधित समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। इस दिशा को पितरों की दिशा भी माना जाता है, इसलिए इस दिशा में घर बनवाने की मनाही होती है।
दक्षिण मुखी मकानों के लिए क्या कहता है विज्ञान –
यदि हम विज्ञान की मानें तो घर की दिशा का उसमें रहने वालों के जीवन में किसी तरह का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। किसी भी घर में आने वाली रोशनी इस बात पर निर्भर करती है कि उस घर का नक्शा कैसा है और उसमें खिड़कियां किस स्थान पर हैं।
किसी भी घर की दिशा अलग-अलग जलवायु और भौगोलिक क्षेत्रों में समान महत्व नहीं रख सकती है। काफी हद तक संभव है कि यदि किसी एक क्षेत्र के लिए कोई दिशा अशुभ मानी जाती हो, वहीं अन्य स्थान के लिए यह दिशा शुभ हो।
विज्ञान के अनुसार दक्षिण मुखी घरों में रहने वाले लोगों को सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह की घटनाओं का अनुभव हो सकता है और इसका दिशा से कोई संबंध नहीं होता है।
दक्षिणमुखी घर के लिए वास्तु टिप्स-
- दक्षिण मुखी घर में घर के मुख्य द्वार पर कुछ पौधे लगाएं जिससे घर के भीतर सकारात्मक ऊर्जा का वास हो सके।
- इस तरह के घर में बागीचा जरूर बनवाएं और उसमें कोई बड़ा पेड़ लगाएं जिससे ऊर्जा उस पेड़ से टकराकर भीतर प्रवेश करे।
- सुनिश्चित करें कि ऐसे घर में दक्षिण दीवारें उत्तरी दीवारों की तुलना में ज्यादा ऊंची हों।
- घर की बाहरी दीवारों को लाल या नारंगी रंग से सजाएं।
इस प्रकार यदि आप दक्षिणमुखी घर में रहते हैं तब भी वास्तु विशेषज्ञ की सलाह से इस स्थान को अपने अनुकूल बना सकते हैं और इसके किसी भी दुष्प्रभाव से बच सकते हैं।
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